Friday 8 January 2016

ढूंढ़ ढूंढ कर गड्ढे में गिरने वाला मनुष्य


मनुष्य के लिए सबसे बड़ा शिक्षक है - जीवन | 

अन्तरात्मा चाहे कितनी भी शुद्ध क्यूँ ना हो, विचार चाहे कितने भी सच्चे क्यूँ ना हो, आचरण चाहे कितना भी पवित्र क्यूँ ना हो, भावनात्मक तौर पर चाहे कितने ही सदभावी क्यूँ ना हो, इन सबके अलावा भी कई बाते जीवन के कई पहलुओं के लिए महत्वपूर्ण होती है | 

उच्च शिक्षा, विद्वता, लेखन इत्यादि कला-कौशल, वाकचातुर्यता, भाषणकला, आदि गुणों के साथ रूप व उच्च पद का भी जीवन में अत्यन्त ही महत्त्व होता है | इस सभी गुणों के बिना जीवन घनघौर काली अंधियारी रात की तरह होता है जिसे सुहानी खूबसूरत रोशन सुबह कभी स्वीकार नहीं कर पाती | इन कमियों की वजह से मनुष्य को जीवन में कई बार उपहास का पात्र भी बनना पड़ता है | 

लेकिन इन सबके बावजूद मनुष्य को अपना धेर्य नहीं खोना चाहिए | ना ही उपहास करने वाले व्यक्तियों के प्रति कोई द्वेष भाव लाना चाहिए | सबके प्रति पूर्ववत प्रेमभाव बनाए रखना ही श्रेयस्कर होता है | मनुष्य को अपनी कमियों को पहचान कर उन्हें स्वीकार करने की हिम्मत दिखानी चाहिए | ढूंढ़ ढूंढ कर गड्ढे में गिरने वाला मनुष्य फिर से उठता है, सम्भलता है, खडा होता है, चलता है, और दौड़ता है | उपहास व असफलता को अपनी कमियों को दूर करने के लिए एक प्रोत्साहन व चुनौती के रूप में स्वीकार करना चाहिए |

"खुदी को कर बुलंद इतना कि हर तकदीर से पहले ख़ुदा बन्दे से खुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है"

उपहास व असफलता जीवन का अन्त नहीं है | यह तो वह पहली सीढी है जहां से मंजिलों के रास्ते खुलते हैं | ये वो सीख है जो कहीं और से नहीं मिल सकती | इसे ग्रहण करना चाहिए | इससे सीखना चाहिए | और आत्मविश्वास के साथ कमियों को दूर करने की दिशा में कदम बढ़ाना चाहिए | 

कोई व्यक्ति अगर कहे कि वह सम्पूर्ण है या फिर हमेशा जीतता ही आया है तो वह सरासर झूठ बोल रहा है | कोई भी व्यक्ति सफलता के शिखर पर हारने के बाद ही पहुँचता है | हार, उपहास, असफलता ही उसके मन में जीतने के लिए कोशिश करने का जज्बा पैदा करती है | अपने "लक्ष्य" को प्राप्त करने के जूनून को और पुख्ता करती है |  चाणक्य व अब्राहम लिंकन की तरह धुन का पक्का होना पड़ेगा | 

मनुष्य में अगर जज्बा है तो वह एक राह क्या, वह दस रास्ते खोज लेगा अपनी "मन्जिल" तक पहुँचने के लिए, बस खुद पर एतबार होना चाहिए | यह सही है बाधाये मनोबल गिराती है | बाधाओं को रुकावट तो माना जा सकता है लेकिन इन्हें समाप्ति मानने की भूल मनुष्य को कदापि नहीं करनी चाहिए | इन्हें चुनोती मानकर मनुष्य को अपने "लक्ष्य" को प्राप्त करने के लिए नए सिरे से प्रयास शुरू करना चाहिए | 

दिल दिमाग चित्त व आत्मा को शान्त रखकर, अध्ययन मनन करते हुए, सफलता पाना ही है इस सोच के साथ अपने "लक्ष्य" को प्राप्त करने के प्रयास जारी रखना चाहिए | 

|| "हम" होंगे कामयाब ||  

Saturday 12 September 2015

मांस बिक्री पर प्रतिबन्ध – कुछ आवश्यक पहलु

मांस बिक्री पर प्रतिबन्ध – कुछ आवश्यक पहलु

एक दो शहरों या राज्यों में मांस की बिक्री बंद होने पर जैन समाज का दंभ एवं अन्य कई समुदायों तथा मीडिया की प्रतिक्रिया काफी चिंता का विषय है l
 
हमें हर स्थिति में यह ध्यान रखना है कि हम कहीं समस्या का हिस्सा तो नहीं बन रहे हैं, या जिसे हम समाधान समझ रहे हैं, कहीं वो किसी बड़ी समस्या को तो नहीं पैदा कर देगा ? एक अल्पसंख्यक समाज होने के नाते हमें इस बात का भी ध्यान रखना है कि कहीं हम राजनितिक शतरंज के मोहरे ना बन जाएं या स्वयं मुद्दा ना बन जाएं l 

हमारी स्थिति खरबूजे जैसी है – छूरी खरबूजे पर गिरे, या खरबूजा छूरी पर – कटना हर हाल में खरबूजे को ही है l
 
नेमिनाथ भगवान् का वैराग्य प्रसंग याद आता है l वो राजुल से शादी हेतु बारात ले कर जा रहे हैं l अचानक उनके कान में पशुओं की चीत्कार सुनाई पड़ती है l पूछने पर पता चलता है शादी में मांसाहार की व्यवस्था है l क्या वो ज्ञान देने में ही उलझ जाते हैं या विरक्त भाव से वहाँ से चले जाते हैं आत्म कल्याण के लिए ? जबाब है कि विरक्त भाव से वहाँ से चले जाते हैं आत्म कल्याण के लिए |
 
जैन यानि सहजता या सरलता l एक ऐसा व्यक्तित्व जो किसी के लिए बाधा नहीं बनता, किसी के लिए रोड़े नहीं अटकाता l जो अपने काम से काम रखता है l पर मेंकर्तत्व, ममत्व या भोगत्व का भाव नहीं रखना हमारा ध्येय है l फिर हम अनावश्यक विवादों में इस भ्रान्ति के साथ क्यों उलझ रहें हैं जैसे सारी दुनिया को बदलने का दायित्व हमने ही ले रखा है l
 
एक सांप अगर मेंढक को खा रहा हो तो जैन धर्म सांप को पत्थर मारने की बात नहीं करता है l हमें शांति से और वीतरागी भाव से चले जाना है l हमें सांप से भी नफरत नहीं करनी है l सब अपने अपने कर्मों के अनुसार परिणमन कर रहे हैं l हमें अपना भाव नहीं बिगाड़ना है l
 
वस्तु स्वातंत्रय या यह आस्था कि एक द्रव्य दुसरे द्रव्य का कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता या उसमे कुछ हेर-फेर नहीं कर सकता – यह जैन संस्कार का आधार-स्तम्भ है l फिर हम किस भ्रम में फंसे हैं l हमारा खुद पर जोर नहीं चलता, अपने परिवार पर जोर नहीं चलता, अपने समुदाय पर जोर नहीं चलता तो फिर हम अन्यान्य समुदायों पर परिस्थिति की जटिलता को समझे बिना जोर जबरदस्ती क्यों करना चाहते हैं ? हम दूसरों के व्यव्हार को नहीं बदल सकते, बल्कि दूसरों के व्यव्हार के प्रति हमारी जो प्रतिक्रिया है, हमारा कार्य क्षेत्र सिर्फ इस प्रतिक्रिया पर नियंत्रण हासिल करने का है, जिसमे भी हम अक्सर असफल हो जाते हैं l
 
जैनिस्तान जैसे शब्दों को इस्तेमाल करने वालों से हमें उलझना नहीं है, उनकी उपेक्षा ही कर देनी है l वरना हम एक चक्रव्यूह में अनावश्यक रूप से फँस जाएंगे l समाज के जिन सदस्यों को बयान देना आवश्यक है उन्हें सम्पूर्ण समाज के दूरगामी हितों को ध्यान में रखना है l 

स्थानीय मुद्दों में दूर बैठे लोगों को ज्यादा उकसाने वाले वक्तव्य नहीं देने हैं l मीडिया द्वारा उत्तेजित करने के प्रयासों को भी हमें विवेकपूर्ण तरीके से समझना और अत्यंत संयम पूर्वक निपटाना है l
 
दरअसल मांस बिक्री बंदी की ये घटना इस स्वरुप में बदल जायेगी ये किसी ने नहीं सोचा था l जिनके प्रयास से ऐसा हुआ उनको भी ये आभास नहीं था कि मुद्दा इतना विकराल रूप ले लेगा l कुछ भ्रांतियां सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के कारण भी पैदा हो गयी जिसने गुजरात में विशिष्ट क्षेत्रों में पर्युषण के दौरान मांस बिक्री पर प्रतिबंध लगाने के फैसले को बरकरार रखा l 

जस्टिस काटजू ने अपने ब्लॉग में ये लिखा है कि ये उनके जीवन का सबसे कठिन निर्णय था। उन्होंने इसके तीन कारण बताये:
 
(1) प्रतिबंध केवल 9 दिनों की छोटी अवधि के लिए लगाया गया था।
(2) अहमदाबाद सहित पश्चिमी भारत के कई हिस्सों में जैन समुदाय बड़ी संख्या में रहता है।
(3) प्रतिबंध नया नहीं था, लेकिन कई दशकों के लिए हर साल लगाया गया था। संदर्भ में सम्राट अकबर के द्वारा जैनियों के सम्मान में लिए फैसले का जिक्र किया गया था।
 
हमने सिर्फ नौ दिन वाली बात पकड़ ली और बाकि दोनों पहलुओं को गौण कर दिया। 2 - 4 दिन के बंद का एक स्वीकृत सिस्टम चल रहा था l हमने उसे उद्वेलित होकर ज्यादा ही खींच दिया l
 
दरअसल, संथारा आन्दोलन ने समाज में एक नयी उर्जा का संचार कर दिया है जिसे अगर सही दिशा नहीं दी गयी तो लोग हर बात को मुद्दा बना लेंगे और अंत में आपस में ही उलझ जाएंगे। मुक़दमे में फ़िलहाल कुछ होना नहीं है l पर हमारा हर कदम संतुलित होना चाहिए l
 
मांस बिक्री बंदी एक आँखे खोलने वाला वाकिया हैl अल्पसंख्या के कारण कुछ हिस्सों को छोड़ कर हम चुनावी समीकरण में कोई महत्वपूर्ण भूमिका नहीं निभा सकते, इस लिए राजनितिक दलों का स्वार्थ हमसे भिन्न मान्यता रखने वाले और हमसे संख्या में बड़े समुदाय के विचारों की पैरवी करने में ही सिद्ध होता दिखेगा l दुसरे, मीडिया और राजनेताओं की नए मुद्दे पैदा करने की आवश्यकता भी हमारे लिए घातक बन गयी है l और तीसरे मीडिया की व्यापक पहुंच के कारण स्थानीय मुद्दे भी अब राष्ट्रिय मंच तक पहुँच जाते हैं l    
 
आज हम अत्यंत अल्पसंख्या में सिमट कर रह गए हैं l देश की राजनीती में हमारा कोई विशेष प्रतिनिधित्व नहीं है l धर्म और जात-पात पर आधारित वोट के गणित में हम कहीं नहीं टिकते l पर स्ट्रेटेजिक तरीके से कार्य करके हम अपनी भूमिका को सकारात्मक रूप से महत्वपूर्ण बनाए रख सकते हैं, और देश को इसकी आवश्यकता भी है l फिर संथारा जैसे मुद्दे ने ये दिखा दिया है हमें अपने अस्तित्व को सम्हालना कितना कठिन होने वाला है l एक स्टे आर्डर को जीत मानने से बड़ी गलती और कोई नहीं हो सकती है l
 
हमें अपने अन्य देशवाशियों से सौहार्दपूर्ण तरीके से ही पेश आना है l किसी की आँख की किरकिरी नहीं बनना है l दुर्भाग्य से कुछ लोग क्षणिक राजनितिक स्वार्थों के कारण समाज के भविष्य को दाव पर लगाने में लग गएँ हैं l कुछ गुरु महाराज भी व्यावहारिक धरातल को समझे बिना अनजाने में ही ऐसे वक्तव्य दे दे रहे हैं जो आग में घी का काम कर रहे है l
 
अन्य धर्मावलम्बी या विपरीत विचारधारा के लोग जिनका व्यवसाय या जिनकी जीवन चर्या हमारे कारण प्रभावित हो रही है, उनसे हम क्या उम्मीद रखते है ? ये राजा-महाराजा वाला दौर नहीं है l मीडिया हर बात दिखलाता है, हर मुद्दे को चटखारेदार बनाने की कोशिश करता है l कुछ लोग टीवी पर आते ही विवेक खो देते हैं l अनावश्यक ही सस्ती लोकप्रियता के चक्कर में विवादों में उलझ जाते है और कीमत समाज चुकाता है l हम जैन हैं, संयमधारी समझे जाते हैं और सबसे पढ़ी-लिखी कौम है l हमें अपना विवेक किसी भी परिस्थिति में नहीं खोना चाहिए l
 
हम स्वेच्छा से शाकाहार अपनाने का प्रचार प्रसार करना चाहिए |

Friday 10 July 2015

"जाकी रही भावना जैसी - प्रभु मूरत देखी तिन तैसी"

जिस हृदय में विवेक का, विचार का दीपक जलता है वह हृदय मंदिर तुल्य है।

विचार शून्य व्यक्ति, उचित अनुचित, हित-अहित का निर्णय नहीं कर सकता। विचारांध को स्वयं बांह्माड भी सुखी नहीं कर सकते।

मानव जीवन ही ऐसा जीवन है, जिसमें विचार करने की क्षमता है, विचार मनुष्य की संपत्ति है। विचार का अर्थ केवल सोचना भर नहीं है, सोचने के आगे की प्रक्रिया है। विचार से सत्य-असत्य, हित-अहित का विश्लेषण करने की प्रवृत्ति बढ़ती है। विचार जब मन में बार-बार उठता है और मन व संस्कारों को प्रभावित करता है तो वह भावना का रूप धारण करता है। विचार पूर्व रूप है, भावना उत्तर-रूप है।

जीवन निर्माण में विचार का महत्व चिंतन और भावना के रूप में है। मनुष्य वैसा ही बन जाता है जैसे उसके विचार होते हैं। विचार ही हमारे आचार को प्रभावित करते हैं। विचार महत्वपूर्ण हैं, लेकिन सद्विचार, सुविचार या चिंतन मनन के रूप में।

चिंतन-मनन ही भावना का रूप धारणा करते हैं। भावना संस्कार बनती है और हमारे जीवन को प्रभावित करती है। भावना का अर्थ है मन की प्रवृत्ति। भाव से रहित आत्मा कितना भी प्रयत्‍‌न करे वह मुक्ति नहीं प्राप्त कर सकती।

शास्त्रों में मोक्ष के जो चार मार्ग बताए गए हैं- दान, शील, तप और भाव यही धर्म है। हम मंदिर में जाकर पूजा करते हैं। कोई मिट्टी की मूरत को पूजता है, कोई सोने-चांदी की, पर भगवान किसमें है? भगवान तो भाव में हैं, मन में हैं।

भावना और विश्वास ही मुख्य कारण है। हमारे जीवन में, हमारे धार्मिक एवं आध्यात्मिक अभ्युत्थान में भावना एक प्रमुख शक्ति है। भावना पर ही हमारा उत्थान और पतन है - भावना पर ही विकास और ह्रास है।

वस्तुत: मन में उठने वाले किसी भी ऐसे विचार को जो कुछ क्षण स्थिर रहता है और जिसका प्रभाव हमारी चिंतन धारा व आचरण पर पड़ता है उसे हम भावना कहते हैं।

शुद्ध पवित्र और निर्मल भावना जीवन के विकास का उज्ज्वल मार्ग प्रशस्त करती है। भावना एक प्रकार का संस्कार मूलक चिंतन है। 

Friday 31 October 2014

मुंगेरीलाल के हसीन सपने


आजकल कालेधन और विदेशी बेंको के खातों में कालाधन रखने वालो की बड़ी चर्चा है ।

किसके नाम सामने आएंगे , ये सबसे बड़ा आश्चर्य का विषय सारे देश के  दिलोदिमाग पर छाया हुआ है ।
उम्मीद है कि ज्यादातर ऐसे उद्योगपतियों व व्यापारियों के नाम सामने आएंगे जिन्होंने टैक्स चोरी के बाद उपजा कालाधन विदेशो में जमा कर रखा है ।

देश के अंदर भी जब जब कालेधन के विरुद्ध मुहीम होती है तो उच्च मध्यमवर्गीय या मध्यमवर्गीय उद्योगपतियों और व्यापारियों पर कहर बरपाया जाता है । बड़े औद्योगिक घरानो के साम्राज्य की तरफ आँख उठाकर देखने की हिम्मत ना तो पहले किसी में थी, ना है, और ना ही होगी ।

आखिर मध्यमवर्गीय व्यापारी वर्ग टैक्स चोरी क्यों करता है ? जटिल कर प्रणाली, बहुविध कर, करों की ऊंची दरें, अफसरशाही का भय, और व्याप्त भ्रष्टाचार मुख्य कारण हो सकते है । हमेशा की तरह व हर मुद्दे की तरह, इस मुद्दे पर भी मध्यमवर्ग पिसता आया है और दबाया व कुचला  जाता रहेगा ।

लेकिन यहाँ हम लक्ष्य से भटक रहे है । असली मुद्दा व लक्ष्य है राजनेताओ व अफसरशाहों द्वारा पिछले 67 सालो में देश और जनता से लूटा गया, चुराया गया धन ।

जनता अपने खून पसीने की कमाई का एक हिस्सा टैक्स के रूप में सरकार को देती है । देश की हर प्रकार की सम्पदा पर जनता का हक़ है । पिछले 67 सालो में जनता की खून पसीने की कमाई के हिस्से में से व देश की सम्पदा में से कितना धन राजनेताओ व अफसरशाहों द्वारा चुराया गया है, इसका कोई हिसाब नहीं ।  क्या ये हिसाब कभी लग पायेगा ? क्या इनके नाम कभी सामने आ पाएंगे? क्या कभी ये धन वापस देश व जनता को मिल  पायेगा ?

व्यापारी वर्ग से टैक्स चोरी के मामले पकडे जाने पर अर्थदंड जुर्माने, व ब्याज के साथ कर वसूल किया जाता है ।  लेकिन राजनेताओ व अफसरशाहों द्वारा जो कुछ किया जाता है वो लूट है, चोरी है, टैक्स चोरी है, भ्रष्टाचार है, दगाबाजी है।  देश व जनता के साथ विश्वासघात है ।  ग्राम पंचायत, नगर पालिका, नगर निगम, राज्य सरकार, से लेकर केंद्र सरकार तक हर छोटा बड़ा राजनेता अपने स्तर पर अपना साम्राज्य कायम करता है ।  जन्म से मृत्यु तक जीवन के हर पहलु, हर क्षेत्र में आम भारतीय को अफसरशाही को भोग प्रसाद का अर्पण करके ही जीवनयापन करना पड़ता है । इतने विराट स्तर पर हो रही इस खुलेआम लूटपाट से कितना कालाधन पैदा होता होगा उसकी कल्पना करना भी असंभव सा लगता है ।

क्या कोई छू भी पायेगा , राजनेताओ व अफसरशाहों के इस विशाल साम्राज्य को ?

नाम सामने आना बड़ी बात नहीं है । बड़ी बात है कि क्या लूटा गया व चुराया गया धन वापस देश व जनता को मिल पायेगा ?  क्या लूट व चोरी करने वाले राजनेताओ और अफसरशाहों को उनके अपराधो की सजा मिल पाएगी ? क्या राजनेताओ व अफसरशाहों पर अर्थदंड और जुर्माना लगाकर ब्याज सहित कर वसूला जाएगा ?

शायद मुझे मुंगेरीलाल की तरह दिन में हसीन सपने देखने की गलत आदत पड़ गयी है । 

Friday 23 May 2014

ये कैसा नेता है ???

ये कैसा नेता है ?


ये कैसा नेता है, जो संसद में जाता है तो भी संसद को मंदिर समझ के उसको नमन करके अंदर प्रवेश करता है ।

ये कैसा नेता है; जो बोलता है भारत माँ की सेवा करना, कैसी कृपा, बल्कि माँ की सेवा के लिए समर्पित हूँ ।

ये कैसा नेता है; जो मुस्लिम कार्ड नही खेल के सभी 125 करोड़ हिन्दुस्तानियों का ख्याल रखने का बोलता है ।

ये कैसा नेता है; जो बोलता है हम चले ना चले देश चल पड़ा है ।

ये कैसा नेता है; जो खुद क्रेडिट ना ले के बोलता है की ये जनता के विश्वास और उनकी आशाओ की जीत है ।

ये कैसा नेता है; जो खुद नाम कमाने की बात नहीं करता बल्कि बोलते है की भारत के लोग हर जगह नाम कमाते है ।

ये कैसा नेता है; जो दुसरो की तरह अपने लिए नही बल्कि देश के लिए जीने का बोलता है ।

ये कैसा नेता है; जो कौन हारा कौन जीता ये ना गिना के देश के विकास की बात करता है ।

ये कैसा नेता है; जो बोलता है की मेरी जो उचाईया दिखती है वो मेरी नही बल्कि मेरी पार्टी के वरिष्ट नेताओ की है जिन्होंने ने मुझे कंधे के ऊपर बैठाया है ।

ये कैसा नेता है; जो सत्ता सँभालने से पहले ही 2019 में अपने कार्यकाल का रिपोर्ट कार्ड देने का बोलता है ।

ये कैसा नेता है: जो जात-पात-धर्म की बात ना करके "सबका साथ; सबका विकास" करने का बोलता है ।

ये वही नेता है; जो अच्छे दिन लायेगा अब से अच्छे दिन की शुरुआत हो गयी है ।

मैं मेरे देश के इस महान नेता माननीय श्री. नरेन्द्र मोदी जी को कोटि कोटि शीश झुका के नमन करता हूँ ।

और इनके "सबका साथ; सबका विकास" के लक्ष्य को पूरा करवाने में हर संभव परिश्रम करने के लिए निष्ठावान हूँ ।

Sunday 29 December 2013

My Wife and Me. - Happy Life.

Wife: I love you baby..
Me: ( softly ) :  I love you too..
Wife : Upset kyun lag rahe ho....??
Me : Bas thoda mood off tha..
Wife: Doston ke saath to bade khush rehte ho, aur mere saath hi drame..
Me: ( pyar se ) : Aisa kuch nahi jaanu,  tabiyat thodi theek nahi hai..
Wife: Haan abhi dost phone karega to 2 sec mein tabiyat theek ho jayegi..
Me: Dost kahan se aa gaye, mera mood thoda upset hai bas..
Wife: Mere saath hi ye sab hota hai,  friends ke saath enjoy karte ho,  badi has has ke pictures click karwate ho.Ya koi aur ladki pasand aa gayi..??
Me:  ( aur jyada pyar se ) : arrey, kahan se kahan baat le jaa rahi ho..?
Wife: Aaj sab clear hoga !!
Me: Kya clear karna hai jaanu, aisa kya ho gaya..??
Wife  ( khud confused ) : Jab tum khud clear nahi,  tumhe kuch pata nahi to main kya bolun..!!!
Me:  ( trying to act smart ) : Tumhe hua kya hai ??  kis baat pe upset ho ?? Batao.....!!!
Wife: Tumhari sangat hi kharab hai
Me: Mere saath to tum ho........!!!
Wife:  Ab bohot ho gaya, ab aur nahi ..........!!!
Me: ( fully crashed ) :  Hua kya hai ? ye to bata do..
Wife: Hum ab saath nahi reh sakte ?
Me:  Ye baat kahan se aayi ?
Wife:  I want Divorce..
Me: Hmmmm Okay........ !!!
Wife  ( gone crazy ) : Haan, yehi chahte ho tum to, fir tum jo marzi kar sako..
Me: Arrey tumne khudne bola abhi,... maine kya galat kaha..??
Wife:  Itni problem thi to bola kyun nahi, main khud bina bole chali jaati tumhari life se..
Me: ( apne baal pakad kar ) : Mujhe meri galti to bata do..
Wife: Waqt aane pe pata chalegi tumhe apne aap, jab main chali jaungi..
Me: Achchaa,  to main wait karta hoon sahi waqt ka..
Wife: Tum serious kab ho-oge..??
Me:: Ab kya hospital mein admit ho jaun,  serious hone ke liye ?
Wife: Go to hell......!!!
Me:: Don't call me again ................!!!
 AFTER 3 HOURS..
Wife: Tumhe pata hai na, main tumhare bina nahi reh sakti jaanu,... Sorry !!!.... I love you my baby..
Me: ( Sab bhool kar ) : Achchaa,.... I love you tooo.........!!!
Wife: Upset kyun lag rahe ho ?............... !!!!

God Help Me Please.............................

Saturday 31 August 2013

सीधी साफ़ व मोटी मोटी बात

में कोई पिज़्ज़ा पास्ता खाने वाला अंग्रेजी में चपर चपर करने वाला बुद्धिजीवी तो हूँ नहीं । मोटी रोटी खाने वाला मोटी बुद्धि का इंसान हूँ । सीधी साफ़ व मोटी मोटी बात समझ आती है और वैसी ही बात करता हूँ । 


कांग्रेस व सोनिया / मनमोहन सरकार ने पिछले दस सालो में इस देश को बड़ी बेरहमी से भ्रष्टाचार / महाघोटालो के जरिये लूट कर खोखला कर दिया है । साथ ही इन्होने दुधारी विनाशकारी योजनाओं को, जहर की मीठी गोली की तरह पेश करके बर्बादी का पूरा इंतजाम कर दिया है । MNREGA ऐसी योजना है जो देश की मेहनतकश जनता को शारीरिक, मानसिक, व नैतिक तौर पर निकम्मा, निठल्ला, पंगु, आत्मसम्मान रहित, व सिर्फ वोट देने वाला गुलाम बनाती है | MNREGA ऐसी योजना है जो देश की सबसे बड़ी ताकत मानव संसाधन का विनाश कर रही है और नतीजे खेती, उद्योग, निर्यात, व अर्थव्यवस्था पर दिख रहे हैं । खाद्ध सुरक्षा योजना और कुछ नहीं MNREGA से भी ज्यादा घातक जहर की गोली है जो कि है बड़ी मीठी । 


ये दोनों दुधारी विनाशकारी योजनाए किसी साजिश का हिस्सा लगती हैं । मानव संसाधन के साथ देश की अर्थ व्यवस्था को भी बर्बाद करने वाली हैं | यह बात अब सर्वविदित है कि MNREGA भ्रष्टाचार का बहुत बड़ा अड्डा है और यही हाल खाद्द सुरक्षा योजना का भी होना सुनिश्चित है । 


मानव संसाधन, खेती, उद्योग. व अर्थव्यवस्था को बर्बाद कर देने वाले उपायों के साथ खुदरा बाज़ार विदेशी व्यापारियों के लिए खोल दिया गया है। विदेशी खुदरा व्यापारियों के लिए ये अनिवार्यता भी समाप्त कर दी गयी है कि उन्हें अपनी खरीद का 30% माल भारत के उद्योगों से खरीदना पड़ेगा । विदेशी खुदरा व्यापारियों को दस लाख से कम आबादी वाले शहरो में भी दूकान खोलने की इजाज़त दे दी गयी है । 


पंगु लाचार मानव संसाधन, देश की बर्बाद होतो खेती, मृतप्राय उद्योग, निरंकुश विदेशी खुदरा व्यापारी,,,, क्या आपको कहीं इन सबमे कुछ समझ आरहा है ? 


ब्रिटिश इंडिया कंपनी भी व्यापार करने ही आई थी । अब इन विदेशी खुदरा व्यापारियों के लिए जमीन तैयार की जारही है । कितना समय लगेगा कहा नहीं जा सकता , लेकिन कदम गुलामी की तरफ निश्चित तौर पर बढ़ रहे हैं| हो सकता है आपका मत अलग हो । 


में रहू या न रहूँ, ...... इतिहास में वर्ष 1612 के मुग़ल सम्राट नुरुद्दीन सलीम जहांगीर की ही तरह वर्ष 2012/13 के मनमोहन सिंह को याद किया जाएगा | वर्ष 1612 में मुग़ल सम्राट नुरुद्दीन सलीम जहांगीर द्वारा की गयी भूल का निराकरण 335 साल भुगतने के बाद वर्ष 1947 में हुआ था । 


वर्ष 2004-2013 की सोनिया / मनमोहन सिंह द्वारा की गयी महाभूलो के क्या नतीजे होंगे और निराकरण कब होगा, शायद स्वयं भगवान भी ना बता सके ।